Types of Financial Instruments – अलग-अलग लोगों की Income व Expenses के तरीके अलग-अलग होते हैं, इसलिए उनके Financial Goals व उन्हें Achieve करने का Time Horizon भी अलग-अलग हो जाता है।
अत: आपका Financial Goal क्या है, आप प्रतिमाह अधिकतम कितनी Saving कर सकते हैं अौर आप कितने समय में अपने Financial Goal को Achieve करना चाहते हैं, इन तथ्यों के आधार पर ये तय होता है कि आपकी Risk लेने की क्षमता कितनी है और आपके Risk Appetite यानी Risk लेने की क्षमता के आधार पर ही आपको उस Financial Instrument में Invest करना होता है, जो कि आपके Financial Goal को उचित समय पर सफलतापूर्वक Achieve करने में मदद कर सकता है।
लेकिन आपको अपना Goal Successfully Achieve करने के लिए किस Financial Instrument में Invest करना चाहिए, इस बात का निर्णय आप तभी ले सकते हैं जबकि आपको विभिन्न प्रकार के Financial Instruments के बारे में पता हो।
वास्तव में केवल दो तरह के Financial Instruments होते हैं, जिन्हें Equity व Debt के नाम से जाना जाता है।
Equity या Market Linked Investments के अन्तर्गत आपका Invest किया गया पैसा Directly या Indirectly, Stock Market यानी Share Market में लगता है, इसलिए Stock Market के बढ़ने या घटने के आधार पर आपके Investment का Amount व Return भी घटता-बढ़ता रहता है, साथ ही आपको आपके Investment पर कब और कितना Return प्राप्त होगा, ये बात पूरी तरह से Market व उस Company के Stock Price पर निर्भर करता है, जिसके Stocks में आपने Invest किया है।
हालांकि यदि आप अच्छी Companies के Stocks में Long Term के लिए Invest करते हैं, तो निश्चित रूप से आपको मिलने वाला Return, Debt Instruments में किए गए Investment से मिलने वाले Return की तुलना में कई गुना ज्यादा हो सकता है। जबकि Debt Instruments के माध्यम से Invested Amount पर मिलने वाला Return पूरी तरह से निश्चित होता है।
Equity Market में Invest करके आप किसी भी कम्पनी में Part Ownership खरीदते हैं, इसलिए कम्पनी में होने वाले Profit व Loss दोनों में आप अपने Invested Amount के अनुपात में भागीदार होते हैं। जबकि Debt Market में Invest करके आप वास्तव में अपनी बचत को कर्ज के रूप में देते हैं, इसलिए आप द्वारा दिए गए कर्ज के Amount से सामने वाला व्यक्ति/संस्था/कम्पनी चाहे जितना कमाए या घाटा खाए, आपको अापका Invested Amount और एक निश्चित Interest Rate के आधार पर Return जरूर प्राप्त होता है।
यानी Debt Instrument में आप जो भी Invest करें, Price-wise आपका Capital पूरी तरह से सुरक्षित व Return पूरी तरह से निश्चित होता है। हालांकि ये Return, Actual Inflation को भी Beat नहीं कर पाता और आपका Capital+Return दोनों मिलकर भी Time-wise कम हो जाते हैं। अर्थात आपको प्राप्त होने वाले Returned Amount की Purchasing Power उतनी भी नहीं रह जाती, जितनी तब थी, जब आपने Debt Instrument में Invest करना शुरू किया था।
चलिए, इन दोनों प्रकार के Instruments को थोड़ा विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।
Equities – Stock Market or Share Market
Equities एक प्रकार का Security होता है जो किसी Company के Stocks में आप द्वारा Invest किए गए Amount के बराबर Part Ownership का अधिकार देता है। उदाहरण के लिए यदि किसी Company की कुल कीमत 100 रूपए है और आपने उस Company के 50 रूपए के Stocks खरीद लिए, तो उस कम्पनी में आपकी 50% की हिस्सेदारी हो जाएगी। इसलिए यदि वह कम्पनी एक साल में कुल 10 रूपए कमाती है, तो उसमें से 5 रूपए आपके होंगे क्योंकि आप उस कम्पनी के 50% Capital के हिस्सेदार यानी Share Holder है। लेकिन यदि उस कम्पनी में 10 रूपए का घाटा हो गया, तो आप द्वारा Invest किए गए 50 रूपए की Value भी 45 रूपए हो जाएगी।
किसी भी Company के Stock में Invest करने के लिए आप IPO के माध्यम से Stocks को Directly Company से भी खरीद सकते हैं, जिसे Primary Market के नाम से जाना जाता है, जबकि यदि आप चाहें तो उसी कम्पनी के Stocks को बाद में Secondary Market यानी Stock Exchange में List हो जाने के बाद भी खरीद सकते हैं।
चूंकि Equity में Investment पूरी तरह से Market पर आधारित होता है, इसलिए किसी भी Debt Instrument की तुलना में अधिक Risky होता है, लेकिन यदि आपके Financial Goal का Time Horizon 5 से 15+ सालों का है, तो आप निश्चिंत होकर Equity में Invest कर सकते हैं, क्योंकि भारतीय Stock Market के इतिहास में किन्हीं भी 5 सालों की समयावधि में Stock Market ने आपके Invested Capital Amount का Loss नहीं किया है और किसी भी 10 साल की समयावधि में Inflation को Beat करते हुए Debt Investment की तुलना में हमेंशा कई गुना अधिक Return दिया है।
Mutual Funds
Mutual Fund Companies वास्वत में कुछ Highly Qualified ऐसे लोगों का समूह होता है, जो लम्बे समय से Market में काम कर रहे होते हैं और इन्हें Market के Movement की किसी भी आम व्यक्ति की तुलना में ज्यादा समझ होती है। इसलिए जिन लोगों को Stock Market में Invest करने से सम्बंंधित ज्यादा समझ नहीं होती अथवा जिनके पास सही Stock Selection करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता, तो वे लोग Mutual Funds के माध्यम से पैसा Invest करते हैं।
चूंकि Mutual Fund Companies भी वास्तव में अपनी समझ के अनुसार Share Market, Money Market व Bonds में ही Invest करते हैं, इसलिए Equities के संदर्भ में बताई गईंं उपरोक्त सभी बातें Mutual Funds के माध्यम से किए गए Investment पर भी पूरी तरह से Apply होती हैंं।
यानी आप द्वारा Mutual Funds के माध्यम से Invest किया गया Amount भी Stock Market में ही लगाया जाता है और Stock Market के उतार-चढ़ाव का प्रभाव आपके Invested Amount व Return पर भी पडता है। अन्तर केवल इतना ही होता है कि Equities के अन्तर्गत आप सीधे ही किसी कम्पनी के Stocks में IPO या Secondary Market के माध्यम से Invest करते हैं, जबकि Mutual Funds के अन्तर्गत आप द्वारा Invested Amount को Mutual Fund Companies के Professional Money Managers Invest करते हैं और बदले में आपको 3% Annually तक Charge करते हैं।
Stock Exchanges (NSE, BSE, MCX, NCDEX) की तरह ही Mutual Fund Companies को भी भारत सरकार की SEBI व RBI द्वारा Govern व Regulate किया जाता है, इसलिए जितना विश्वास के साथ आप Stock Exchanges के माध्यम से कम्पनियों के Shares में Invest करते हैं, उनता ही विश्वास के साथ अाप इन Mutual Fund Companies के माध्यम से भी Invest कर सकते हैं।
Mutual Funds के माध्यम से Equity Market में Invest करने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि यदि आप मात्र 500 रूपए प्रतिमाह भी Save करते हैं, तो आप SIP के माध्यम से ठीक उसी तरह से INR 500/- प्रतिमाह इन Mutual Fund Schemes के माध्यम से Stock Market में Invest कर सकते हैं, जिस तरह से आप Bank RD में प्रतिमाह एक निश्चित Saving Amount को Deposit करते हैं। दोनों में अन्तर केवल इतना है कि Bank RD, एक प्रकार का Debt Instrument है, जबकि Mutual Fund एक तरह का Equity Instrument है।
Bonds
Bank FD / RD की तरह ही Bonds एक तरह का Fixed Income Instrument है, जिन्हें Capital Raise करने के लिए Issue किया जाता है। इस Financial Instrument के माध्यम से न केवल Private Companies अपने लिए Capital Raise करती हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार के Financial Institutions व Central/State Government भी देश के विकास से सम्बंधित विभिन्न प्रकार के Projects को पूरा करने के लिए इन्हीं तरीकों से Public का पैसा प्राप्त करती हैं।
सामान्यत: सरकारी Bonds का RISK सबसे कम होता है, जबकि Private Sector के Bonds तुलनात्मक रूप से अधिक Risky होते हैं। हालांकि Bank FD/RD की तुलना में Bonds पर अधिक Interest Return दिया जाता है और Bonds पूरी तरह से Debt Instrument होते हैं। अर्थात Bonds के माध्यम से Private/Public Companies या Government वास्तव में Public से कर्ज के रूप में पैसा लेती हैं और उन्हें एक निश्चित Interest Return देती हैं, फिर उन Companies/Government को चाहे फायदा हो, चाहे नुकसान, इन Bonds के माध्यम से Invest करने वाले लोगों को उनका Capital+Interest Return Guaranteed प्राप्त होता है, क्योंकि Bonds कुछ हद तक Bank FDs के समान ही होते हैं।
इसलिए यदि आप लगभग Bank जितनी ही Security के साथ Bank FD से थोड़ा सा ज्यादा Return चाहते हैं, तो आप Bonds के माध्यम से अपने Surplus या Savings को Invest कर सकते हैं।
Bonds की समयावधि कुछ महीनाें से 30 साल तक हो सकती है। यानी आपका Invested Amount कुछ महीनों से लेकर 30 साल तक के लिए Invest हो सकता है, इसलिए Bonds में Invest करने से पहले इस बात को निश्चित कर लेना चाहिए कि आपका Investment कम से कम कितने समय के लिए Close Ended हो जाएगा।
Bonds भी Stocks की तरह ही Stock Exchange पर Trade हो सकते हैं, लेकिन इन्हें Stocks की तुलना में अधिक Safe माना जाता है क्योंकि यदि कम्पनी Bankrupt हो जाएग, तो Bond Holders को, Equity Holders की तुलना में पहले Pay किया जाता है।
यदि आप Bonds के माध्यम से Safe Investment करना चाहते हैं, तो आपको हमेंशा AAA या AA+ Rating वाले Bonds में ही Invest करना चाहिए। इससे कम Rating वाले Bonds में Invest करना काफी Risky साबित हो सकता है, जहां आपके Capital के भी डूब जाने की सम्भावना रहती है।
CDs (Certificates of Deposit)
ये एक विशिष्ट प्रकार का Deposit Account होता है, जो किसी भी Bank के Saving Bank Account की तुलना में अधिक Higher Return देता है। साथ ही Saving Account की तरह ही इनमें Invest किया गया 1 लाख तक के Amount की जिम्मेदारी सरकार लेती है। इसलिए यदि आप इनमें Invest करते हैं, तब भी Saving Account की तरह ही 1 लाख तक का Amount आपको किसी भी स्थिति में जरूर प्राप्त होता है।
इसके अन्तर्गत Invest करते समय हमें एक निश्चित समयावधि के लिए एक निश्चित Amount को Invest करना होता है और सामान्यत: जितने अधिक समय के लिए Amount को Invest किया जाता है, मिलने वाले Interest की Rate उतनी ही ज्यादा होती है। जबकि Specified Time की Maturity से पहले Invested Amount को Withdraw करने पर Penalty भी भरना पड़ता है।
Treasury Bills and Money Market Funds
इस Financial Instrument को हम Banks के समान ही Secure मान सकते हैं, जबकि इनसे मिलने वाला Return, Bank FD/RD की तुलना में कम से कम 1 से 2% तक अधिक होता है। साथ ही Bank Account की तरह ही इस Financial Instrument द्वारा Invested Amount, FDIC द्वारा Insured रहता है, इसलिए किसी भी स्थिति में इस Instrument के माध्यम से Invested Amount का Capital Loss नहीं होता। साथ ही ये Financial Instrument Exactly Cash की तरह ही Liquid होते हैं। यानी हम जब चाहें तब इन्हें Withdraw कर सकते हैं।
Bank / Post-Office Deposits
Bank या Post Office में FD/RD के माध्यम से किया गया Investment इस Instrument के अन्तर्गत आता है। ये भी पूरी तरह से Debt Instrument होता है जिस पर आपको एक निश्चित समयावधिक के बाद एक निश्चित Return प्राप्त होता है, हालांकि सामान्यत: ये Return Inflation को भी Beat नहीं कर पाता, इसलिए आपको मिलने वाले Return का Purchasing Power, Invest किए गए Amount की Purchasing Power से कम हो जाता है।
इन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षित Investment Instrument माना जाता है, जो कि Price-wise तो निश्चित रूप से आपके Invested Capital को Protect करते हैं, लेकिन Time-wise Inflation को Beat नहीं कर पाते। अत: Price-wise ये Risk Free माने जा सकते हैं, लेकिन Time-wise ये भी पूरी तरह से Risk Free नहीं होते।
चूंकि इन्हें सबसे सुरक्षित Investment Instrument माना जाता है, इसलिए इनसे मिलने वाला Return किसी भी अन्य Financial Instrument की तुलना में सबसे कम होता है।
इस प्रकार से Debt Instrument के अन्तर्गत Bank/Post-Office Deposits, Money Market, Treasury Bills, CDs व Bond आदि आते हैं, जबकि Stock Market व Mutual Funds, Equity से सम्बंधित Financial Instruments हैं। इनके इलावा लोग Physical Gold व Properties में भी Invest करते हैं, लेकिन इन्हें Non-Financial Instruments के अन्तर्गत किया गया Investment माना जाता है।
हालांकि Gold ETF के रूप में Stock Exchange पर भी Virtual Gold में Investment किया जा सकता है और इस तरह के ETF को भी Debt Instrument के अन्तर्गत ही माना जाता है।
साथ ही कई Insurance Policies जैसे कि ULIP (Unit Linked Insurance Plan) को भी एक तरह के Investment Instrument की तरह Represent किया जाता है, लेकिन इस तरह के Plan में Insurance Companies द्वारा कुछ Amount, Equity Market में लगाया जाता है जबकि बचे हुए Amount को Insurance Premium के रूप में ले लिया जाता है। इसलिए इस तरह के ULIP से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि ये Plans न तो पूरी तरह से Investment Category की Requirements को पूरा करने में सक्षम होते हैं, न ही Proper Insurance ही Provide कर पाते हैं।
इस तरह से इस Post में हमने विभिन्न प्रकार के उपलब्ध Financial Instruments के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश की, ताकि आपको विभिन्न प्रकार के Financial Instruments के बारे में पता रहे।
अगले Article में हम विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे कि किस तरह के Financial Goal को Achieve करने के लिए किस तरह के Financial Instrument में Invest किया जाना चाहिए, ताकि कम से कम Investment में अधिकतम Security व Safety के साथ न केवल Successfully Goal Achieve हो, क्योंकि सभी प्रकार के Financial Goals को एक ही प्रकार के Financial Instrument में Invest करके Successfully Achieve नहीं किया जा सकता। कुछ Goals को Successfully Achieve करने के लिए हमें अधिक Risky Instrument में Invest करना जरूरी होता है जबकि किसी अन्य प्रकार के Financial Goal को Achieve करने के लिए हम अधिक Risky Instrument में Invest नहीं कर सकते।
कई बार स्थिति ऐसी होती है कि हमें किसी Specific जरूरत को पूरा करने के लिए Fixed व Debt दोनों प्रकार के Financial Instruments में Invest करना जरूरी होता है ताकि Safety के साथ Goal को समय पर अथवा Marked Time से पहले Achieve किया जा सके।